
वो पूछती थी मुझसे क्या मुराद है तुम्हारी उस भगवान से...मेने तब कहा नहीं सोचा बताऊंगा कभी इत्मीनान से...आज बता रहा हु तू सुनना जरा गौर से...जब भी मांगी तेरी ही खुशियां मांगी मेने मेरे प्रभु श्री राम से...
सोचा था छीन लाऊंगा तेरे लिए सारी खुशियां इस जहान से...तेरी एक हंसी के लिए तोड़ लाऊंगा उस चाँद को भी आसमान से...तुझे दिल में रखूँगा जाने ना दूंगा खुद से दूर कभी...हमेशा के लिए एक कर दूंगा मेरी जान को तेरी जान से...
तेरी कहानी टिकी है झूट पर अच्छा नहीं तेरा चलना यूं शान से...धोका ही तो दिया है ऐसा कौन सा काम कर लिया महान से...गुस्सा कमजोरी है मेरी इससे तो में भी ना बच सका...विनाश निश्चित है अगर ये तीर निकल गया कमान से...
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